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चला जा रहा हूँ...

चला जा रहा हूँ मैं लगातार इन राहों पर कदम दर कदम पहर दर पहर ना मंज़िल की आस है ना उसे पाने की कोई प्यास है बस इन लगातार चलती रहो पर मैं भी यूँ ही बस चला जा रहा हूँ… कभी  आने वाला वक़्त डरा जाता है कभी गुजरा वक़्त भी गम जवां कर जाता है ना इस पल की खबर है ना इसके बीत जाने का ठिकाना बस यादों और चिन्ताओ में ही मैं यूँ घुट रहा हूँ इन लगातार चलती राहों पर मैं भी यूँ ही बस चला जा रहा हूँ.. इन सब में ये देख ही नही पाया कभी के ये पल जो चला जा रहा है अभी कभी  ये ही मुझे डराता था कभी  ये ही अतीत बनके वापस आ जाएगा एहसास ये अब हुआ मुझे के बीता हुआ हर पल था कितना सुहाना समेटे हुए अपने आप मे पूरा अफ़साना पर अब ना कोई भी पल यूँ फिसल पाएगा बिना मतलब के यूँ छुप के निकल पाएगा क्यूंकी अब सारे डर छोड़कर मैं इस पल को ही जिए जा रहा हूँ अबकी बार मैं अपनी खुशी से लगातार बस चला जा रहा हुँ..

मैं फिर से गाना चाहता हूँ...

मैं फिर से गाना चाहता हूँ भूली हुई किसी नज़्म को फिर गुनगुनाना चाहता हूँ कड़ाके की सर्दी मे बुझी हुई शमो को फिर से जलना चाहता हूँ मैं फिर से गाना चाहता हूँ… खो गई है यादों मे एक कहानी कहीं उसे कागज पे फिर से लिखना चाहता हूँ एक ही बार मिली है ज़िंदगी ये बात अपने लबों से सबको बताना चाहता हूँ मैं फिर से गाना चाहता हूँ… गिटार की झंझनती धुन पे हर पल थिरकना चाहता हूँ जोकर की तरह हर पल रो कर भी सबको हंसाना चाहता हूँ अपनी भावनाओं को मैं अपने ही होंठों से सबको सुनाना चाहता हूँ मैं फिर से गाना चाहता हूँ…

बड़े दिनो के बाद

आज बड़े दिनों मे जो देखा नज़र घुमा के देखता हूँ इस दुनिया में रहने वाले बंदे खुदा के जी रहे हैं इस जीवन को भुलाके उस खुदा को हैं सीने मे दबा एक अंजन सा सैलाब है कोई अपने तन से बेजार है तो कही टूटा कोई ख्वाब है किसी का यार उससे नासाज़ है तो किसी के अपनों से, खुदा को ज़्यादा प्यार है कभी पास रह कर भी तकरार है तो कहीं पे दूरियाँ हज़ार है हर कोई अपने किसी गम पे आँसू बहकर जिए जा रहा है कत्ल अपनी मासूमियत का बेवजह किए जा रहा है आख़िर कब तक उस दुख का लावा तुम्हारे अंदर धड़कता रहेगा?? कब तक वो खुदा तुम्हारी खुशी को तरसता रहेगा?? एक बार तो मुस्कुरा दो उस खुदा को भी तो ये बता दो गम चाहे जितने भी बड़े हों मुस्कुरा सकते हैं हम फिर भी खिलखिला के बता दो बता दो, उस खुदा को मुस्कुरा के

उन्मुक्त गगन के पंछी

ए उन्मुक्त गगन के पंछी, क्यूँ छोड़ गगन को बैठा है?? क्या तुझमे उड़ने की प्यास नही?? छूने की नभ को आस नही?? प्यासे नैनों मे क्यू उसके तू अरमान लिए बैठा है?? आए उन्मुक्त गगन के पंछी…. देख दूर वो साथी तेरे हर भोर उड़ाने भरते है तूफ़ानो मे फंसकर भी उड़ने से न वो डरते हैं फिर क्यू तू अपनी इच्छाओ को दबा लिए बैठा है?? ए उन्मुक्त गगन के पंछी… ये घोसला तेरा घर नही नभ ही तेरा हक़ है पाने उस गगन को लेकिन उड़ना तुजको बेशक है दुनिया तो जलती ही है हरेक उड़ने वाले से पर झुकती भी है ये उँचे रहने वालो से क्यू अपनी कमियों से फिर तू यूँ हार लिए बैठा है?? ए उन्मुक्त गगन के पंछी क्यू छोड़ गगन को बैठा है??

माँ का आँचल

आज ये किस मोड़ पे जिंदगी के.. हम आ खड़े हुए, कितने रिश्ते इन रहो पे… बेमोल पडे हुए, माँ! तेरा आँचल ही तो… सुकून देता है, ज़ख़्म हो जिस्म के या… फिर हो दर्द-ए-दिल, ढँक कर पूरे जहाँ से… हर ज़ख़्म सुखा देता है, आज हम निकल आए है जीवन मे… रहो पे इतना आगे, भूल गये के कहाँ से थे… आख़िर हम भागे, ओ माँ! तेरा आँचल ही.. कही खो सा गया है, क्यूंकी सबको लगता है के बच्चा… अब बड़ा हो गया है, तुझे तो पता है किस कदर… ज़माने के ये गम, हमे हर समय जलते ह… हम तो उस वक़्त बचपन की याद मे… दो आँसू ही बहा पाते हैं, जहाँ न गम थे ना.. ज़माने की ये दौड़, दुनिया थी तो बस… माँ के चारों ओर, माँ तेरी गोद मे फिर.. सिमट जाने को जी करता है, तेरी आगोश मे आके फिर से… बिलख जाने को जी करता है, इस बेदर्द दुनिया मे जहाँ… आँसू भी सूख गये आँखो मे, तुझसे बयान कर अपना दर्द… आँखे फिर भिगोने को जी करता है, दिल मेरा देख तुज़से कह रहा. आके फिर जादू की झप्पी दे माँ, तेरा आँचल ही क्यूंकी सुकून देता है……

ऐ ज़िंदगी...

ए ज़िंदगी तू क्यूँ है यूँ खफा सी? हरदम साथ चलकर भी कुछ जुदा सी दिल की टीस पे मुस्कुराते लबों सी हंसते चेहरो के पीछे से झाँकते हुए गमों सी ए ज़िंदगी तू क्यूँ है यूँ खफा सी?? तुझे खुल के जीने के फेर मे क्यूँ जीना ही है भूल गये? गम को पीने की इच्छा है पर पीने मे खुद को ही भूल गये राह मे तो चल दिए हैं पर रास्ता ही हैं भूल गये मंज़िले तो नज़र आती है पर खुदकी मंज़िल हैं भूल गये गमों के ढेर मे छुपी खुशियो पे ध्यान नही है हर मंज़िल पाकर लगता है वो यही थी पर अब नही है हर पल दिल मे एक चाह है जो कभी मिटती नही है सच्ची खुशी दे दिल को ऐसी मंज़िल मिलती नही है पर फिर जो हमे मिला उसमे ही खुश हो जाते हैं दिल से तो नही पर दूसरो को बताने के लिए ही मुस्कराते हैं हर पल जलते दिल को छुपाकर भी सबके साथ ठहाके लगते हैं सोचो के क्या कभी हम खुदके लिए भी मुस्कराते हैं?? हँसी भी लगती है एक सनम बेवफा सी अंदर से दगाबाज़ ऊपर कातिल अदा सी ए ज़िंदगी तू क्यूँ है इतनी खफा सी….???

हर मंज़िल की एक ही राह नही होती

हर मंज़िल की एक ही राह नही होती.. हर से डर जाए वो सच्ची चाह नही होती… मंज़िल को जाती राहें भी कभी… गुम जाती हैं अंधेरो मे.. कभी भटकी हुई सी राहें भी… मिल जाती हैं मंज़िल पे ही.. सिर्फ़ राहों पे चलना बेमतलब होता है… जब तक मंज़िल की सच्ची चाह ऩही होती… हर मंज़िल की एक ही राह नही होती… लोग अक्सर डर जाते है, सहम जाते हैं कही ग़लत राह पे तो कदम नही जा रहे!! दूर अपनी मंज़िल से हमको ले जा रहे.. पर असल मे अहमीयत कभी.. राहों की नही होती… दिल मे चाह,मान मे जज़्बा… और एक ही लक्ष्य की तलाश हो तो… राह की किसी को परवाह नही होती.. क्यूंकी हर मंज़िल की एक ही राह नही होती…